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इन बिमारियों में फायदेमंद है अमलतास

अमलतास पूरे देश में सभी जगह पाया जाता है। मार्च अप्रैल के महीने में इस पेड़ की पत्तियाँ झड़ जाती हैं। उसके बाद नई पत्तियाँ और फूल निकल आते हैं। उसके बाद इसमें कलियाँ लगती हैं जो डेढ़ से दो फुट लम्बी, गोल व नुकीली होती हैं तथा सालभर पेड़ पर लटकी रहती हैं।

अन्य भाषाओँ में इसके नाम-

भाषाएँ नाम
 संस्कृत  आराग्वध, व्याधिघाती, चतुरंगुल, राजवृक्ष, कृतमाल
 हिंदी  अमलतास, धनबहेडा
 गुजरती   गरमाल
 मराठी   बाहवा
 बंगाली  सोतालु
 पंजाबी  अमलतास,गिर्दमली
 तेलगु  रल्लेकाया
 अरबी   ख्यारे शम्बर
 अंग्रेजी  पुन्डिंग पाइप ट्री
 लैटिन  कैसिया फिस्चुला

प्रयोग: अमलतास का प्रयोग उदर शुद्धी, खाँसी, मुखपाक, टांसिल, उदरशूल आदि रोगों में किया जाता है।

विभिन्न रोग व उपचार: अमलतास को विभिन्न रोगों में उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता।

कब्ज़: इसके फूलों का गुलकंद, आंत्र रोग, सूक्ष्म ज्वर एवम् कोष्ठबधता में लाभदायक है।

रक्तपित्त: इसके फल के गूदे को अधिक मात्रा में लगभग 25 से 50 ग्राम तक 20 ग्राम मधु और शर्करा के साथ सुबह- शाम देने से उधर्वगत रक्तपित में लाभ होता है।

ज्वर: इसकी जड़ का प्रयोग ज्वर का निवारण करने के लिए और पौष्टिक औषधि के रूप में किया जाता है।

सुख प्रसव: अमलतास की 4-5 कली के 25 ग्राम छिलकों को पीसकर उसमे शक्कर मिलाकर, छानकर गर्भवती स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से बच्चा स्वथ्य पैदा होता है।

कुष्ठ: अमलतास की 15-20 पत्तियों से बना लेप कुष्ठ का नाश करता है। अमलतास के 10-20 पत्तियों पीसकर लेप लगाने ए चकते चर्म रोगों में लाभ मिलता है।

अमलतास की जड़ का लेप कुष्ठ रोग के कारण हुई फटी त्वचा को हटाकर व्रण स्थान को समतल कर देता है।

टॉन्सिल: कफ के कारण टॉन्सिल बढ़ने पर जल पीने में भी जब कष्ट होता है तब इसकी जड़ की 10 ग्राम छाल को थोड़े जल में पकाकर उसको बूँद-बूँद के मुख में डालते रहने से टॉन्सिल में आराम आता है।

कण्ठमाला: इसकी जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर सूंघने और लेप करने से कण्ठमाला में आराम मिलता है।

खाँसी: अमलतास की गिरी 5 से 10 ग्राम को पानी में डालकर उसमें तिगुना बूरा डाल गाढ़ी चाशनी बनाकर चटाने से सूखी खाँसी मिटती है।

उदरशुद्धि: अमलतास के 2-3 पत्तों को नमक और मिर्च मिलाकर खाने से उदरशुद्धि होती है।

नाम की फुंसी: इसके पत्ते और छाल कोएस्कर नाक की छोटी-छोटी फुंसियों पर लगाने से फुंसियाँ ठीक हो जाती हैं।

व्रण: अमलतास, चमेली, करंज इनके पत्तों को गौमूत्र के साथ पीसकर लेप करें। इससे व्रण, दूषित अर्श और नाड़ी-व्रण (नासूर) नष्ट होता है।

विरेचक: इसके फल का गूदा सर्वश्रेष्ठ मृदु विरेचक है। यह ज्वर अवस्था, सुकुमार बालक एवं गर्भवती महिलाओं को दिया जाता।

दाद: अमलतास की 10 से 15 ग्राम मूल या मूल त्वक को दूध में औंटाकर पीसकर लेप करने ए दाद में लाभ होता है। इके पंचांग को जल में पीसकर दाद-खुजली और दुसरे चर्म विकारों पर लगाने से लाभ होता है।

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उदरशूल: उदरशूल और अफारे में इसकी मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभि के चरों और लेप करने से लाभ होता है।

शिशु की फुंसी: इसके पत्तों को गौ के दूध के साथ पीकर लेप करने से नवजात शिशु के शरीर पर होने वाली फुंसियाँ या छाले दूर हो जाते हैं।

पित्त प्रकोप: इसके गुदे के 50 से 60 मिली लीटर से काढ़े में 5-10 ग्राम इमली का गूदा मिलाकर प्रातःकाल पिलाने से तित्त प्रकोप में लाभ होता है। यदि रोगी को कफ की अधिकता हो तो इमें थोड़ा-सा निशोथ का चूर्ण भी मिलाना चाहिए।

अर्दित: अमलतास के 10-15 पत्तों को गर्म करके उनकी पुल्टिस बाँधने से सुन्न्वात, गठिया और अर्दित में फायदा होता है।

बात वाहिनियों के आघात से उत्पन्न अर्दित आदि वाट रोगों में इसके पत्तों का स्वरस की पक्षाघात से पीड़ित स्थान पर मालिश करने से भी लाभ होता है।

हारिद्रमेह: अमलतास के 10 ग्राम पत्तों को 400 मिली लीटर पानी में पकाकर चौथाई अंश शेष रहने पर इसे छानकर इस क्वाथ का सेवन करना हारिद्रमेह में लाभकारी है।

आमवात: आराग्वध (अमलतास) के 2-3 पत्तों को सरसों के तेल में भूनकर शाम के भोजन के साथ सेवन करने से आमवात में लाभ होता है।

विसर्प: अमलतास मूल 8-10 पत्तों को पीसकर, घी मिलाकर लेप करने से विसर्प में लाभ होता है।

वातरक्त: अमलतास मूल 5 से 10 ग्राम तक को 250 मिली लीटर दूध में औंटाकर सेवन करने से वातरक्त का नाश होता है।

पित्त: लाल रंग की निशोध के क्वाथ के साथ अमलतास की मज्जा का कल्क मिलाकर अथवा बेल के क्वाथ के साथ अमलतास की मज्जा का कल्क, नमक एवं शहद मिलाकर पित्त की प्रधानता में 10 से 20 मिली लीटर की मात्रा में पीना चाहिए।

उदावर्त्त: चार वर्ष से लेकर बारह वर्ष तक का बालक यदि दाह तथा उदावर्त्त रोग से पीड़ित हो तो उसे अमलतास की मज्जा को 2 से 4 नग मुनक्का के साथ देना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

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