त्राटक- सुंदर, स्वस्थ आंखों के लिए:
मानव शरीर एक जटिल प्रणाली है, इसके बावजूद वैदिक ऋषियों ने प्राचीनकाल में ही इसे पूर्णतः समझकर शरीर की प्रत्येक अंग को स्वच्छ, सशक्त, जीवंत एवं स्वस्थ रखने हेतु कई लाभदायक क्रियाओं का वर्णन किया है, आज हम अपनी नेत्रों को स्वस्थ रखने हेतु एक ऐसी ही एक क्रिया की चर्चा करेंगे.
अक्सर लोग यह सुनकर चकित रह जाते हैं कि मानव शरीर की सबसे सक्रिय मांसपेशियां आखों की होती हैं.
इसे समझने के लिए एक छोटा सा प्रयोग करते हैं:
किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठकर अपनी आँखें बंद कर लें और कुछ क्षणों के लिए अपने नेत्रगोलकों को स्थिर रखने का प्रयास करें, आप पाएंगे कि अपनी आंखों को कुछ क्षण के लिए भी स्थिर रखना अत्यंत कठिन है.
ऐसा क्यों ?हमारे नेत्रगोलकों कि स्थिरता अथवा क्रियाशीलता का सीधा संबंध हमारे मस्तिष्क में आने वाले विचारों की गति से हैं, ये विचार ही तो हैं जो हमारी इंद्रियों को इच्छाओं की पूर्ती के लिए सदैव व्यस्त रखती हैं , जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कभी विश्राम ही नहीं मिलता और साथ ही हमारे नेत्रगोलक भी लगातार काम करते रहते हैं.
त्राटक एक ऐसी प्राचीन वैदिक तकनीक है जिसका नियमित अभ्यास न केवल आपकी आंखों को स्वच्छ करता है अपितु आखों की मांसपेशियों को आराम भी देता हैं, साथ ही यह आपकी आखों की सुंदरता और एकाग्रता को बढ़ाता है और इसे नियमित रूप से करने से दृष्टि में भी सुधार होता है.
वज्रासन या अन्य किसी भी आरामदायक स्थिति में अपनी पीठ सीधी रखते हुए बैठें। एक दीपक को आँखों के स्तर पर, दो फुट की दूरी पर रखें, यह आवश्यक है कि दीपक को गाय के घी से ही जलाएं क्योंकि इसमें औषधीय गुण होते हैं , जब कि मोम और अन्य पदार्थों से हानिकारक धुएँ का उत्पादन होता है. दीपक को जलाएँ और लौ के नीले केन्द्र में आँखों को स्थिर रखते हुए एकटक देखें, कुछ समय बाद आँखों से पानी निकलना शुरू होगा. पांच से दस मिनट के लिए इस प्रक्रिया को जारी रखें और धीरे-धीरे जितना आराम से संभव हो सके, उतना समय में वृद्धि करते जाए. इसका नियमित रूप से अभ्यास करने पर धीरे धीरे विचारों को स्थिर करने और एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में वृद्धि होगी.
अब धीरे से आंखें बंद करें और आंतरिक रूप से लौ को देखना को जारी रखें, कुछ मिनट बाद, धीरे से उठें. अपने मुँह में पानी भरें, इसे पीना नहीं है, पानी अपने मुंह में रखते हुए, आँखों को धोना शुरू करें, ऐसा लगातार पांच मिनट के लिए करें और फिर पानी बाहर थूक दें.
त्राटक के दैनिक अभ्यास से न केवल दृष्टि में सुधार होता है अपितु आँखों की चमक और आकर्षण भी बढ़ता है.
इस क्रिया को कुछ उच्च क्रियाओं के साथ संयुक्त कर अभ्यास करने से, जो कि ‘सनातन क्रिया- एजलैस डाइमैन्शन’ में विस्तृत हैं , शरीर में स्थित सूक्ष्म नाडीयाँ खुलती हैं और अंतर्दृष्टि समन्धित क्षमताएँ जागृत होती है। स्थूल आंखों की दृष्टि सीमित होती हैं, परंतु जब इन क्रियाओं का उसी रूप में अभ्यास किया जाता है, जैसे योगियों द्वारा इन्हें प्राचीन समय में दिया गया था, तब इन सीमाअों का विस्तार बढ़ जाता है और तब एक साधक अपनी अंतर्दृष्टि का प्रयोग कर , समय और स्थान के विभीन्न आयामों में होने वाली घटनाओं को न केवल अनुभव अपितु साक्षात् देख पाता है.
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