टीबी एक ऐसी बिंमारी हैं जो आजकल हर किसी को अपनी चपेट में ले रही हैं, इसे ट्यूबरक्लोसिस के नाम से जाना जाता हैं यह एक प्रकार की संक्रामक बीमारी है जो “मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस” नामक बैक्टीरिया के कारण होती है, जो मुख्या तौर पर फेफड़ो को संक्रमित करती हैं लेकिन इसके अलावा अभी यह शरीर के कई हिस्सो को अपना शिकार बनाती हैं, यह बिमारी किसी भी उम्र के लोगो को हो सकती हैं, प्रदुषण, गलत खानपान और गलत आदत के चलते होता हैं, धूम्रपान भी इसका एक कारण होता हैं.
टीबी एक जटिल बिमारी होती हैं, लेकिन आजकल हर ३ में से १ व्यक्ति इससे पीड़ित हो रहा हैं, इस बिमारी का इलाज अगर सही समय पर ना हो पाए तो ये जानलेवा बन जाती हैं, यह एक प्रकार की संक्रामक बिमारी हैं जो रोगी के संपर्क में आने से भी हो सकती हैं. टीबी के बैक्टीरिया हवा में मौजूद रहते हैं जिन लोगो की इम्युनिटी सिस्टम स्ट्रांग होता हैं उनको इसका असर नहीं होता हैं, लेकिन अगर यह लोगो की इम्युनिटी स्ट्रांग नहीं होती हैं तो उनपर ये बॅक्टेरिआस एक्टिव हो जाते और उन्हें अपनी चपेट में ले लेते हैं.
क्या हैं टीबी के लक्षण:
तीन हफ़्तों से ऊपर तक तगड़ी खासी आते रहना.
खासी या बलगम में खून आना.
एक महीने से ज़्यादा बुखार आना.
शाम के समय बुखार आना.
गले के पास गिल्टी या सूजन आना.
वज़न का तेज़ी से कम होना.
एक महीने तक सीने में दर्द होना.
कमज़ोरी आना.
पीठ में दर्द और कमज़ोरी होना.
आयुर्वेद से टीबी का इलाज:
आयुर्वेद में हर बिमारी का इलाज संभव हैं, लेकिन इसके लिए बहुत ज़्यादा धर्य रखने की आवश्यकता होती हैं, अगर आपको टीबी के शुरूआती लक्षण दिखाई दें तो आप इन जड़ी बूटियों का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन बेहतर होगी की आप किसी विशेषज्ञ से मिलकर इसकी पूरी जानकारी लें, यहाँ हम आपको बताएंगे उन जड़ी बूटियों के बारे जो आपको निजात दिलाएंगी टीबी जैसी बिमारी से.
लहसुन:
लहसुन में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट कई प्रकार के बिमारियों से लड़ने में सक्षम होता हैं, इसीलिए आयुर्वेद में इसका उपयोग औषधि की तरह किया जाता हैं, इसमें सल्फ़र नामक तत्व पाया जाता है जो टी.बी. के बैक्टीरिया को रोकता है. इसमें एलीसिन और अजोएने नामक तत्व भी पाए जाते हैं जो इस बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकते हैं.
इसके अलावा यह प्रतिरक्षा तंत्र को भी मज़बूत बनाता हैं. प्रतिदिन लहसुन की कुछ कालिया खाने से इस रोग से आराम मिल सकता हैं.
काली मिर्च:
काली मिर्च का उपयोग आयुर्वेद में कई नुस्खों में किया जाता हैं, काली मिर्च टीबी में इस प्रकार से काम करती हैं.
यह फेफड़ों की सफ़ाई करती है.
इसमें उपस्थित विषैले पदार्थों को बाहर निकालती है
टी.बी. के छाती में होने वाले दर्द को कम करती है.
टीबी को ठीक करने के लिए इसको इस प्रकार प्रयोग करे, काली मिर्च को घी में अच्छे से तल लें, अब इसकी पेस्ट बनायें तथा टी.बी के कारण होने वाली की परेशानी को दूर करने के लिए सुबह इसका सेवन करें. इसका सेवन नियमित तौर पर करने से टीबी से आराम मिलता हैं.
ग्रीन टी:
ग्रीन में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो आपकी प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाने में आपकी मदद करते हैं और शरीर से आपके विषैले पदार्थो को बहार निकालते हैं, रोज़ दूध की चाय पीने के बजाए दिन में तीन बार ग्रीन टी का सेवन करने से आपको काफी फायदा पहुँचेगा.
पुदीना:
पुदीना लोग खाने के स्वाद को बढ़ाने के लिए डालते हैं, लेकिन यह टीबी से आपको बचाने में मदद करेगा. यह फेफड़ों में स्थित बलगम को पिघलाता है तथा इसे स्वस्थ रखता है, पुदीना , शहद और माल्ट विनेगर प्रत्येक को 1:1:½ के अनुपात में लेकर रस बनायें। ½ गिलास गाजर के रस में इसे मिलाएं, यह टी.बी. के लिए एक उत्तम उपचार है. इसका उपयोग नियमित तौर पर किया जा सकता हैं.
TUBERCULOSIS DISEASE CAUSED BY BACTERIA NAME AS MYCOBECTERIA, IT IS AN INFECTIOUS DISEASE WHICH CAN BE CURE BY THESE REMEDIES
WEB-TITLE: AYURVEDIC TREATMENT FOR TUBERCULOSIS
KEYWORDS: TUBERCULOSIS DISEASE, SYMPTOMS, AYURVEDIC, TREATMENT