डायबिटीज के मरीज़ों को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं जिसके कारण उन्हें अपना ख़ास ख्याल रखना पड़ता हैं अगर आप डायबिटिक हैं तो आपको क्लॉ टोज’ होने की संभावना काफी ज्यादा होती है. जिसके करण आपको बहुत ज़्यादा असहजता का सामना करना पड़ सकता हैं आईये हम आपको बताते हैं आखिर क्यों डायबिटिक लोगो में होता हैं क्लॉ टोज का खतरा, क्लॉ टोज में पैरों की अंगुलियों पंजों की तरह ऊपर की ओर मुड़ी हुई होती हैं. डॉक्टरों का कहना है कि डायबिटीज या न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों में क्लॉ टोज होने की काफी ज्यादा संभावनाएं होती हैं.
क्या होता हैं क्लॉ टोज का खतरा:
डॉक्टरों के मुताबिक हालांकि क्लॉ टोज तकलीफदायक नहीं होता है लेकिन इससे मरीजों को चलने में बहुत ज़्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता हैं, क्योंकि इसमें किसी किसी प्रकार की हलचल नहीं होती हैं इसीलिए अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया हैं ये स्थिति युवा लोगों में 20 साल की उम्र में भी प्रकट होने लगी है.
मुंबई स्तिथ ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिशियन प्रदीप मूनोट के अनुसार ‘रेउमेटोइड अर्थराइटिस (RA) भारत में क्लॉ टोज होने के प्रमुख कारणों में से एक है, खासकर महिलाओं में या डायबिटिक लोगों में पैरों से जुड़ी समस्याएं बहुत ही सामान्य हैं, हर डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति में जीवन के किसी स्टेज में क्लॉ टो का होना लगभग तय होता है.
एक सर्वे के अनुसार पुरुषो की अपेक्षा में यह समस्या महिलाओ में ज़्यादा होने की आशंका होती हैं, महिलाएं पुरुषों की तुलना में क्लॉ टोज से पांच गुना ज्यादा पीड़ित हैं.
डॉक्टरों के मुताबिक क्लॉ टोज को टो जॉइंट्स की मूवमेंट के आधार पर दो समूहों में विभाजित किया गया हैं पहला लचीला और दुसरा सख्त.
लचीले क्लॉ टो में जोड़ों में मूवमेंट की क्षमता होती है. इस तरह के क्लॉ टो को खुद ही सीधा किया जा सकता है.
सख्त क्लॉ टो में मूवमेंट की क्षमता काफी कम होती है. इससे कई बार पैरों की मूवमेंट स्थिर हो जाती है और इससे पैरों के घुटनों पर ज्यादा तनाव पड़ता है जोकि दर्द और गांठ बनने का कारण बनता है.
क्लॉ टोज की विकृति उम्र बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे बढ़ती है और करीब 20 फीसदी भारतीय इससे प्रभावित हैं मरीजों में ये समस्या उनकी उम्र के 7वें और 8वें दशक में प्रायः नजर आती है, हालांकि इससे प्रभावित उम्र समूह घट रहा है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता हैं की यह खत्म हो जाएगा.
कई बार ऐसी समस्याओं में सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है. हालांकि ये तभी होता है जब सख्त क्लॉ टोज से हई विकृति बेहद गंभीर हालत में होती है. सर्जरी में टो के बेस पर स्थित हड्डी को छोटा किया जाता है, ताकि इसे सीधा करने के लिए जगह बन जाए.
कई बार ऐसी समस्याओं में सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है. हालांकि ये भी तभी होता है जब सख्त क्लॉ टोज से हई विकृति बेहद गंभीर हालत में होती है. सर्जरी में टो के बेस पर स्थित हड्डी को छोटा किया जाता है ताकि इसे सीधा करने के लिए जगह बन जाए.
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