वे दिन गए जब प्रकृति और प्रकृति गौण उत्पाद अनमोल संपत्ति होते थे :, जब किसान गाय के गोबर और प्राकृतिक उर्वरकों का प्रयोग करते थे , जब बर्तन मिट्टी या प्राकृतिक धातुओं के थे, जब भोजन मलमल में लपेटा जाता था , जब सूरज की रोशनी और प्राकृतिक रंग द्वारा ब्लीच और रंगाई की जाती थी , जब संचार का मतलब था व्यक्तिगत बातचीत, जब मिट्टी और चिकनी मिट्टी से सफाई होती थी, और जब गुलाब और मोगरा ही खुशबू इतर थे।
यह कृत्रिम काल है, रेयान और एक्रिलिक , कीटनाशकों और प्लास्टिक, रसायन और रंजक , कंप्यूटर और मोबाइल फोन का युग। संक्षेप में, यह एंडोक्राइन असंतुलन का युग है। आपने शायद ही कभी थायराइड, माइग्रेन , क्रोनिक थकान, अवसाद , दमा आदि बीमारियों और शरीर मे शैंपू, शॉवर जैल , क्रीम, लोशन आदि रासायनिको के सेवन का संयोग बनाया होगा । इसलिए आप निरन्तर इन पदार्थो के प्रयोग से अपने शरीर को विक्रिति कि ओर ले जा रहे है।
थियो कबोर्न , पीएच.डी., पर्यावरणीय स्वास्थ्य विश्लेषक ( एंडोक्राइन विघटन एक्सचेंज, कोलोराडो) बताते हैं कि कैसे उपर्युक्त स्रोतों से रसायन हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारे हार्मोन जैसे इंसुलिन, थयरोक्सिन ,एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन के साथ हस्तक्षेप करते है । यह हार्मोन शरीर के महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करते है जैसे विकास , तनाव, यौन विकास और व्यवहार , चयापचय , बुद्धि इतियादि।
थायराइड का रोग, अंत: स्रावी प्रणाली का एक हिस्सा है, योगिक स्तर पर आकाश तत्व के असंतुलन के रूप में देखा जाता है। शारीरिक स्तर पर, यह हाइपो – थयरोिडिस्म या हाइपर- थयरोिडिस्म के रूप मे शरीर की चयापचय की प्रक्रिया मे असंतुलन प्रकट करता है । लक्षणों में से कुछ हैं: वजन में अचानक परिवर्तन , बाल हल्के, सुस्ती या घबराहट , कर्कश आवाज, त्वचा परिवर्तन , असामान्य मासिक धर्म प्रवाह, आदि ।
ऐसी स्थिति कि जड़ पर अक्सर भावनात्मक अशांति , अतिक्रियशीलता और रसयनिको का सेवन होते है, जो प्राणमाया कोष में प्राणों के मुक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते है । प्राणिक शरीर में प्रत्येक चक्र शरीर की कुछ शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है । थायराइड का सम्बन्ध विशुद्धि चक्र में खेद से है।
सनातन क्रिया आधुनिक मनुष्य के लिए एक आरोग्यजनक अभ्यास है जो भावनात्मक और शारीरिक तनाव की नित्य चुनौतियों से निपटने में सहायता करता है , इसमें विशुद्धि को सशक्त करनेकी कुछ क्रियाओं का उल्लेख है।
1. हलासन
अपनी पीठ के बल सीधे लेट जाएं। साँस लेते हुए धीरे-धीरे दोनों पैरों को उपर की ओर उठाएं ओर दोनों पैरों को सिर के पीछे लगाने कि कोशिश करें। अंत में फर्श को पैर की उंगलियों से स्पर्श करे । सहारे के लिए हथेलियों को पीठ के निचले हिस्से में रखा जा सकता है या हाथों से पैर की उंगलियों को छुआ जा सकता है ।
2. कंधरासन
पीठ के बल लेट जाएं, घुटनों को मोड़कर तलवों को कूल्हे के करीब ज़मीन पर टिकाएं। हाथों से एड़ियों को पकडे । जमीन पर मजबूती से कंधे और सिर को जमाते हुए कूल्हों और पीठ को उठाये जब तक की पीठ पूरी तरह से धनुषाकार ले ले। फिर अपनी ठोड़ी को सीने से स्पर्श करे ।
जो लोग पेट के रोगों और रीढ़ की हड्डी की परेशानियों से ग्रस्त हैं, उनके लिए यह आसन उपयुक्त नहीं है ।
आयुर्वेद मे थायरॉयड ग्रंथि की सक्रियताके लिए प्रतिदिन वर्जिन नारियल तेल के 3 से 4 बड़े चम्मच का सेवन नियत है।
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