स्वाइन फ्लू एक वायरल बुखार है, जो कि वायरस से फैलता है, इनफ्लुएंजा यानी फ्लू वायरस के अपेक्षाकृत नए स्ट्रेन इनफ्लुएंजा वायरस A से होने वाला इनफेक्शन है. इस वायरस को ही H1N1 कहा जाता है, यह वायरस बारिश कि वजह से और भी घातक हो जाता है, वातावरण में नमी के कारण यह वायरस और भी तेज़ी से फैलने लगता है.
अप्रैल 2009 में इसे सबसे पहले मैक्सिको में पहचाना गया था, तब इसे स्वाइन फ्लू इसलिए कहा गया था क्योंकि सुअर में फ्लू फैलाने वाले इनफ्लुएंजा वायरस से ये मिलता-जुलता था,यही वजह है कि मौसम के बदलते ही इनके मामले बढ़ने लगते है, मौसम खराब होने के साथ ही स्वाइन फ्लू से होने वाली मौतें भी बढ़ रही हैं, इसके इनफेक्शन ने 2009 और 10 में महामारी का रूप ले लिया था-लेकिन WHO ने 10 अगस्त 2010 में इस महामारी के खत्म होने का भी ऐलान कर दिया था,
स्वाइन फ्लू के लक्षण
स्वाइन फ्लू के लक्षण भी सामान्य एन्फ्लूएंजा जैसे ही होते है –
- नाक का लगातार बहना, छींक आना
- कफ, कोल्ड और लगातार खांसी
- मांसपेशियां में दर्द या अकड़न
- सिर में भयानक दर्द
- नींद न आना, ज्यादा थकान
- दवा खाने पर भी बुखार का लगातार बढ़ना
- गले में खराश का लगातार बढ़ते जाना
स्वाइन फ्लू के कारण
स्वाइन फ्लू का वायरस हवा में ट्रांसफर होता है
खांसने, छींकने, थूकने से वायरस सेहतमंद लोगों तक पहुंच जाता है
शुकर इन्फ्लून्जा आम तौर पर सुअरो में पाया जाता है, यह H1N1 वायरस मानव में सूअर के साथ अधिक संपर्क में रहने के कारण मानव सरीर में आजाता है, यदि सूअर का मॉस ठीक तरह से पका कर नही खाया गया तो H1N1 वायरस जिसे स्वीन्व फ्लू कहते है मानव शरीर में फ़ैल जाता है.
मानव शरीर में H1N1 वायरस के प्रति प्रतिरोधक सहमत बहुत कम होती है, इसलिए यह जानलेवा बन चूका है, यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है, H1N1 वायरस वायु के ज़रिये फैलता है,अगर यह कसी कठोर जगह गिरा तो 24 घंटे ज़िंदा रहता है और अगर किसी तरल जगह गिरे तो 20 मिनट तक ज़िंदा रहते है.
स्वाइन फ्लू से बचाव
बचाव के लिए जरूरी है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं, जिन लोगों को निम्न में से कोई बीमारी है, उन्हें ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.
जैसे किसी को फेफड़ों, किडनी या दिल की बीमारी हो, मस्तिष्क संबंधी (न्यूरोलॉजिकल) बीमारी मसलन, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग, डायबीटीज़, ऐसे लोग जिन्हें पिछले 3 साल में कभी भी अस्थमा की शिकायत रही हो या अभी भी हो, ऐसे लोगों को फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
बच्चों में बुखार या बढ़ा हुआ तापमान होने पर डॉक्टर से संपर्क करें, यदि बच्चा अत्यधिक थकान महसूस करे तो उसे डॉक्टर को दिखायें.
व्यस्कों को बहुत जल्दी जल्दी सांस लेना या सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। छाती या पेट में दर्द या भारीपन होना भी स्वाइन फ्लू का लक्षण हो सकता है.
साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए और फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखते ही सावधानी बरती जाए, तो इस बीमारी के फैलने के चांस न के बराबर हो जाते हैं.
स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए ख्याल रखें कि जब भी खांसी या छींक आए रूमाल या टिश्यू पेपर यूज करें, इस्तेमाल किए मास्क या टिश्यू पेपर को ढक्कन वाले डस्टबिन में फेंकें, थोड़ी-थोड़ी देर में हाथ को साबुन और पानी से धोते रहें.
लोगों से मिलने पर हाथ मिलाने, गले लगने या चूमने से बचें, फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें.
अगर फ्लू के लक्षण नजर आते हैं तो दूसरों से एक मीटर की दूरी पर रहें, फ्लू के लक्षण दिखने पर घर पर रहें। ऑफिस, बाजार, स्कूल न जाएं, बिना धुले हाथों से आंख, नाक या मुंह छूने से परहेज करें
स्वाइन फ्लू का इलाज
स्वाइन फ्लू को रोकना का बड़ा उपाय है, हालांकि इसका इलाज भी अब मौजूद है, आराम करना, खूब पानी पीना, शरीर में पानी की कमी न होने देना इसका सबसे बेहतर है, शुरुआत में पैरासीटमॉल जैसी दवाएं बुखार कम करने के लिए दी जाती हैं, बीमारी के बढ़ने पर एंटी वायरल दवा ओसेल्टामिविर (टैमी फ्लू) और जानामीविर (रेलेंजा) जैसी दवाओं से स्वाइन फ्लू का इलाज किया जाता है.
लेकिन इन दवाओं को कभी भी खुद से नहीं लेना चाहिए, वैसे सर्दी-जुखाम जैसे लक्षणों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली तुलसी, गिलोए, कपूर, लहसुन, एलोवीरा, आंवला जैसी आयुर्वेदिक दवाईयों का भी स्वाइन फ्लू के इलाज में बेहतर असर देखा गया है, सर्दियों में इन्हें लेने से वैसे भी जुखाम तीन फिट की दूरी पर रहता है, और स्वाइन फ्लू के वायरस से बचने के लिए भी इतने ही फासले की जरूरत होती है.
Web-Title: Swine Flu a dangerous, use these precaution
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