आखिर दिल में छेद होता क्यों हैं यह शायद ही किसी को पता होगा लेकिन बहुत से ऐसे मामले आजकल सामने आ रहे हैं जिनमे मौत का कारण दिल में छेद होना पाया जा रहा हैं, किसी के भी दिल में छेद होना जन्मजात समस्या होती हैं, जो की जन्म के समय से ही होती हैं इसका इलाज मुश्किल होता हैं और इसका इलाज करवाना हर किसी के बस में भी नहीं हैं.
अगर नवजात शिशुओ में हृदय के दोनों हिस्सों के बीच कोई छेद हो तो सामान्य रुप से रक्त का प्रवाह अधिक दबाव वाली जगह से कम दबाव वाली जगह की और होना चाहिये अर्थात् रक्त का संचार बायें चेंबर से दाये चेंबर की तरफ होना चाहिये जिसे लेफ्ट टू राइट संट कहते है.
दिल में छेद होने के कारण:
अभी तक इस बात का सही तौर पर पता नहीं लगाया जा सका हैं लेकिन हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार इस बात का पता लगा लिया गया हैं, चिल्ड्रंस हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया के शोधकर्ताओं का दावा है कि ‘आईएसएल1’ क्रोमोसोम के एक हिस्से के जीन दिल की असमान्यताओं से जुड़े हैं. जिसके कारण दिल में असामान्यताएं पैदा हो जाती हैं. जिसके कारण यह समस्या होती हैं.
दिल में छेद होने के लक्षण:
बच्चे में किसी प्रकार का हृदय रोग होने पर नीला पड़ जाता है जिसमें शरीर और चेहरे के अलावा जीभ, नाखून और होंठ भी नीले हो जाते है.
ऐसे बच्चे बार-बार बेहोश होते हैं जब इस प्रकार की स्तिथि हो तो बच्चे में हृदय रोग होने पर नीला पड़ जाता है जिसमें शरीर और चेहरे के अलावा जीभ, नाखून और होंठ भी नीले हो जाते है.
शिशु को दूध पीने में परेशानी होती हैं दूध पीते हुए पसीना आना
बच्चे का वजन कम होना
बच्चे का जल्दी थक जाना,
बार-बार निमोनिया होना
ऐसे लक्षण पाए जाते हैं जिससे दिल में छेद होने की आशंका व्यक्त की जाती हैं इसका पूरी तरह से कन्फर्म करने के लिए हृदय रोग विशेषज्ञ जांच करने के बाद यह डिसाइट करते हैं कि शिशु एंजोप्लास्टी से ठीक होगा या सर्जरी से. समय रहते इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है, इसीलिए इसके इनके लक्षणों को ध्यान में रखते हुए आपको बच्चे का तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए.
क्या हैं इसका इलाज:
प्रेगनेंसी के दौरान आधुनिक चिकित्सा टेक्नालॉजी में गर्भावस्था के 18 वे हफ्ते में फीटल ईको कार्डियोग्राम करके देखते है जिसमें हार्ट अल्ट्रासांऊड मशीने इस्तेमाल की जाती है इस टेस्ट में अगर कोई विकार पाया जाता है तो उसे इस बारे में परामर्श दे दिया जाता हैं.
इसका पता लगाने के लिए हृदय रोग विशेषज्ञ चिकित्सक नवजात बच्चे का मूत्र और रक्त का परीक्षण करवाने के साथ-साथ इकोकार्डियोग्राम, ईसीजी और चेस्ट के एक्सरे भी करते हैं.
एंजियोग्राफी कराकर डॉक्टर्स बच्चे में दिल के छेद का आकार, साइज और गहराई देखी जाती है. उसके बाद यह तय किया जाता हैं की बच्चे को सुरगरी की ज़रूरत हैं या नहीं.
केथेटर के ज़रिये दिल के छेद का इलाज:
मेडिकल साइंस ने इतनी तर्रक्की कर ली हैं की इसका इलाज अब मुमकिन हैं, आधुनिकतम चिकित्सा तकनीकी में अब केथेटर के जरिए छेद को डिवाइस से बंद कर दिया जाता है. डिवाइस लगाने की प्रक्रिया एंजियोप्लाटी करने जैसी होती है.
इस तकनीक का उपयोग किये जानेके बाद माँ-बाप को कुछ सावधानी रखने की सलाह दी जाती हैं जैसे समय पर दवाईयाँ, खाद्य तरल पदार्थ, बिस्तर पर आराम, ज्यादा चलने-फिरने की मनाही आदि की सलाह दी जाती है.
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