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सिंघाड़ा, जलफल या पानीफल के नाम से यह सिद्ध है कि यह पानी में होने वाला फल है। समस्त भारत में तालाबों में इसके पौधे लगाये जाते हैं। बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में यह तालाबों में खूब होता है शीतकाल में यह ताज़ा फल बाजारों में बिकते हैं। कोमल कच्चे फलों की गिरी की तरकारी बनती हैं। कच्चे फलों को यों ही या उबाल कर खाते हैं। पके फलों को छीलकर अन्दर का सुखाया हुआ गूदेदार भाग हमेशा पंसरियों के यहाँ मिलता है। इसके आटे की रोटियां या हलवा बनाकर खाया जाता है। यह पौष्टिक आहार होने के साथ-साथ फलाहार माना गया है। व्रत-उपवास जिनमें अन्न खाना निषद्ध होता है, वहाँ सिंघाड़े को फलाहार के रूप में लाया जाता है।

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ये त्रिकोणाकार फल कच्ची अवस्था में हरे और पकने पर काले हो जाते हैं इनके उपरी दो कोणों पर दो बड़े कांटे होते हैं। फल के छिलके हटाने पर सिंघाड़ा निकलता है जो कच्ची अवस्था में दुधिया रसदार होता है और सूखने पर सख्त हो जाता है। इसे संस्कृत में श्रृंगाटक और अंग्रेजी में वाटर कैल्ट्रौस कहते हैं। इसका लैटिन नाम ट्रेपा नेटांस है।

सिंघाड़े में मुख्य रूप से स्टार्च और मैगनीज होता है। खनिज द्रव्यों में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह, ताम्र, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटाशियम और आयोडीन होता है। विटामिनों में ए, बी और सी होते हैं।

यह मीठा तथा कसैला रसयुक्त और ठंडा (शीतवीर्य) हैं। इसको खाने से पित्त का शमन होता है और वायु तथा कफ की वृद्धि होती है। ठंडी तासीर वाला होने से पित्त के रोगों में इसे उपयोग में अधिक लाते हैं। पके हुए सिंघाड़े की अपेक्षा कच्चा सिंघाड़ा अधिक मीठा और रूचिकर होता है। जिन स्त्रियों का गर्भाशय निर्बल हो गया हो, वे श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर से पीड़ित रहती हों, इन कारणों से वे गर्भ धारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें सिंघाड़ा अवश्य खिलाना चाहिये। सिंघाड़ा उनके प्रदरादि को दूर कर गर्भाशय को बल प्रदान करता है। इसके सेवन से यदि कोई अन्य विशेष विकृति नही है तो वे गर्भधारण कर लेती हैं। जो स्त्रियाँ गर्भ तो धारण कर लेती हैं, किन्तु उन्हें गर्भ स्त्राव हो जाता है, वे भी इसका सेवन करें। इससे गर्भस्त्राव नही होता। यही नहीं, इसके नियमित सेवन से स्त्री गौरवर्ण संतान को जन्म देती है। इस प्रकार से यह स्त्रियों के लिए परमोपयोगी है।

यह स्त्रियों के लिए ही नही बल्कि पुरूषों के लिए भी उतना ही उपयोगी है। वीर्यवर्द्धक और पौरुष शक्तिवर्द्धक है। जिन युवकों का वीर्य पतला पड़ गया हो वे इसे सेवन कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। युवकों के बहुत से रोगों में यह लाभदायक सिद्ध हुआ है।

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जो स्त्री-पुरुष दुबले-पतले हैं, उन्हें यह मामूली फल पुष्ट बना देता है। इसके अतिरिक्त यह किसी अंग से गिरते खून को रोकता है, चाहे वेह खुनी बवासीर हो, खुनी दस्त हो, नकसीर हो या रक्तप्रदर हो। इन सभी में यह लाभ करता है। बुखार के रोगी का यह संताप, अधिक प्यास लगना, घबराहट आदि मिटाकर उसे लाभ पहुचता है। इसके सेवन से मूत्र खुलकर लगता है और मल बंधा हुआ आता है।

सिंघाड़े के आटे में दुगुना गेहू का आटा मिलाकर बनाई गई चपातियाँ अत्यंत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती हैं। ये बढ़ते बच्चों के लिये, गर्भवती स्त्री के लिये और प्रत्येक कमजोर स्त्री-पुरुष के लिये विशेष लाभदायक होती हैं।

सिंघाड़े का औषधि के रूप में उपयोग:

श्वेतप्रदर- सूखा सिंघाड़ा 50 ग्राम, बड़ी इलायची के बीज 25 ग्राम, इमली के बीज 25 ग्राम और मिश्री 100 ग्राम लेकर सबको पीसकर बारीक चूर्ण कर रखें। इसमें 5-5 ग्राम चूर्ण सुबह शहद के साथ और रात में सोते समय दूध के साथ दें। शीघ्र लाभ होगा।

रक्तप्रदर- सूखा सिंघाड़ा 50 ग्राम, कमल गट्टा की गिरी 20 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 10 ग्राम, वंश लोचन 20 ग्राम, मिश्री 100 ग्राम लेकर सबको पीसकर चूर्ण बना लें। सुबह-शाम 5-5 ग्राम चूर्ण चावलों के धोवन से दें। रोग की अधिकता में दिन में 3-4 बार दें। चावलों का धोवन के लिये 20 ग्राम चावलों को कूट कर 160 मिली पानी में भिगों दें। दो घंटे भीगने के बाद उन्हें मसलकर छान लें। यही पानी चावलों का धोवल है। इस पानी को काम में लाये। भिगोने से पहले चावलों पर लगी पोलिश उतार लें।

गर्भ स्त्राव- उक्त सिंघाड़े के हलुवे में 5-7 ग्राम बबूल की गोंद को छोटे टुकड़े कर के घी में तल कर इसमें 3-4 छोटी इलायची के दानों को पीसकर मिलाये और सेवन करें। साथ में मिश्री मिले गाय के दूध का सेवन करें।

वीर्य वृद्धि हेतु- सिंघाड़ा का चूर्ण और छिलके युक्त उड़द की डाल का चूर्ण दोनों को बराबर लेकर घी में भून लें। इसमें आवश्यकता अनुसार बूरा शक्कर मिला लें। यह चूर्ण 20 ग्राम, शहद 10 ग्राम और शुद्ध घी 5 ग्राम मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।

स्वप्नदोष- सिंघाड़ा 250 ग्राम, आँवला चूर्ण 100 ग्राम, छोटी हरड का चूर्ण 100 ग्राम, हल्दी 50 ग्राम और मिश्री 300 ग्राम लेकर सबका चूर्ण बनाकर दिन में 5-5 बार सेवन करें।

स्मरण शक्ति बढ़ाने हेतु- एक सिंघाड़ा (छोटे टुकड़े कर लें), पाँच बादाम और पाँच काली मिर्च को रात में भिगोकर सुबह पीसकर घी में भून लें। इमें दूध मिलाकर खाने से याद्दाश्त बढ़ती है।

उल्टी- एक चम्मच सिंघाड़े का चूर्ण (5-7 ग्राम), बड़ी इलायची के बीजों को सेक कर बनाया गया चूर्ण 2 ग्राम, दोनों को शहद में मिलाकर चाटने से कैंसर होना रूकता है। इससे गभवती को होने वाली उल्टियाँ भी रूकती हैं।

पेशाब में जलन- ताजा सिंघाड़े खायें या सिंघाड़े के आटे को पानी में मिलाकर एवं शक्कर मिलाकर सेवन करने से पेशाब में होने वाली जलन मिटती है।

प्रमेह- सभी प्रकार के पितज प्रमेहो में सिंघाड़ा 5 ग्राम और धनिये की गिरी 3 ग्राम पीसकर सेवन करें।

अम्लपित्त- कच्चे सिंघाड़े खाना अम्लपित्त के रोगी के लिए लाभदायक होता है।

गले के रोग- सिंघाड़े में आयोडीन होने से यह गले के कई रोगों में लाभ करता है। कच्चे सिंघाड़े खाने से गले में टोंसिल ठीक होते हैं। इनके सेवन से आवाज में भी मधुरता आती है।

अधिक प्यास लगना- तजा सिंघाडों का सेवन करने या इसके रस का सेवन करने से अधिक प्यास लगना बंद होता है।

मूत्र क्रच्छु- सिंघाडों पानी में उबालकर इनका काढ़ा बनाकर ठंडा होने पर छान लेंसिंघाडों इस काढ़े को पीते रहने से मूत्र क्रच्छु दूर होता है और पेशाब साफ़ आता है, जिससे रोगी को आराम मिलाता है। इससे पेशाब का अधिक पीलापन भी दूर होता है।

दाद- सूखे सिंघाड़े को नीबूं के रस में घिसकर दाद पर लगाने से दाद धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।

नाखूनों के सौंदर्य हेतु- प्रतिदिन पाँच-पाँच ग्राम सूखे सिंघाड़े के चूर्ण का सेवन करने से नाखूनों में निखार भी आता है।

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