कैंसर शब्द ऐसे रोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसमें असामान्य कोशिकाएं बिना किसी नियंत्रण के विभाजित होती हैं और वे अन्य ऊतकों पर आक्रमण करने में सक्षम होती हैं, कैंसर की कोशिकाओं रक्त और लसीका प्रणाली के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फैल सकती हैं. लेकिन हमको कैंसर को जीवन का अंत नहीं समझ लेना चाहिए.
कैंसर के नए मामले रोज़ सामने आते हैं एक नए शोध के अनुसार यह पाया गया हैं की कैंसर के मरीज़ की तादाद हर साल बढ़ रही हैं जिसके कारण इस बिमारी से कई हज़ार लोगो की मौत हो चुकी हैं.
क्या बताते हैं आंकड़े:
कैंसर की बीमारी बड़ी तेजी से फैल रही है, यह तो हम सही जानते हैं लेकिन एक ताजा आंकड़े बताते हैं कि अमरीका में 42 फीसद मर्द और 38 फीसद औरतों को कैंसर होने की आशंका है. जो की एक बड़ा हिस्सा कवर कर रहा हैं वही ब्रिटैन में यह संख्या और ज़्यादा बढ़ रही हैं.
यहां 54 फीसदी आदमी और 48 फीसदी महिलाओं को कैंसर होने का खतरा हैं, 2015 में ब्रिटेन में पच्चीस लाख लोग इस बीमारी के शिकार थे. इसमें हर साल तीन फीसदी यानी चार लाख नए केस जुड़ते हैं , ये आंकड़े बता रहे हैं कि कैंसर की बीमारी आम होने लगी है. जबकि इसका इलाज इतना महँगा हैं की एक आम आदमी इसका इलाज नहीं करा सकता हैं.
इसीलिए कैंसर के कारण मारने वालो की संख्या तेज़ी से हर साल बढ़ती जा रहे हैं जो की एक अच्छा संकेत बिलकुल भी नहीं हैं, हमे यह पता होना चाहिए के कैंसर किन कारणों से होता हैं, और किन चरणों में इसका इलाज संभव हैं.
कैंसर हैं क्या:
हमारा पूरा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं से बना हुआ हैं, इसको कोशिकाओं से मिलकर ऊतक बनते हैं और ऊतकों से मिल कर हमारे अंग बनते हैं इसी प्रकार शरीर की संरचना की इकाई हमारी सेल्स होती हैं, यह सेल्स नर के शुक्राणु और मादा के अंडाणु के मेल से एक गेंदनुमा कोशिका बनती है.
यह कोशिकाएं डिवाइड होती रहती हैं लेकिन यह प्रक्रिया एक नियंत्रित माहौल में चलती हैं जब हमारी कोशिकाएं सामान्य से ज़्यादा या बहुत ज़्यादा बढ़ने लगती हैं, तो यह समस्या खड़ी हो जाती हैं. कैंसर के बारे में बात करते हुए ब्रिटेन के वैज्ञानिक चार्ल्स स्वांटन कहते हैं कि जब सेल्स का बढ़ना बेकाबू हो जाता हैं, तभी इंसान को कैंसर की बीमारी होती है. ये बीमारी कुछ गिनी चुनी कोशिकाओं के बेकाबू होने से होती है। मगर ये इतनी तेजी से फैलती हैं कि इन्हें रोक पाना नामुमकिन सा हो जाता है.
क़ब होती हैं यह कोशिकाएं बेकाबू या कैंसर होने का खतरा:
विशेषज्ञओ के अनुसार ये कोशिकाएं बेकाबू तब होती हैं, जब इनमें कोई अंदरूनी बदलाव होता है, तब ये जीन्स का फरमान मानने से इंकार करके अपनी मनमर्जी से बढ़ने लगती हैं, ये हमारे अंदर, ट्यूमर या रसौली के तौर पर सामने आता है. को की कैंसर का कारण बन जाता हैं.
चार्ल्स स्वांटन और उनकी टीम इस जटिल बिमारी के बारे में रिसर्च करे के उसके खात्मे का इंतज़ाम करने में लगी हुई हैं , वो कहते हैं कि कैंसर की कोशिका, म्यूटेशन नाम की क़ुदरती प्रक्रिया से बनती है, म्यूटेशन या तब्दीली आने का मतलब है कि उस कोशिका के जीन में अचानक से कोई हेर-फेर हो गया हैं, इसी से कोशिकाएं बेकाबू होकर बंटने और बढ़ने लगती हैं. और यह इस जटिल बिमारी का कारण बन जाती हैं.
किस प्रकार साइंटिस्ट करेंगे इस प्रक्रिया को करेंगे काबू:
वैज्ञानिक कहते हैं कि कैंसर के खात्मे के लिए किसी भी कोशिका के अंदर आए इस बदलाव को निशाना बनाने से बात बन सकती है, होता यूं है कि कोशिकाओं में बंटवारे के साथ-साथ फर्क आता जाता है, जिस प्रकार एक पेड़ की टहनियां बढ़ने के समय हर टहनी में फर्क आता हैं उसी प्रकार इनमे भी फर्क होता हैं,.
ब्रिटिश वैज्ञानिक चार्ल्स स्वांटन और उनके साथी मानते हैं कि कैंसर के खात्मे के लिए कोशिकाओं में आई इसी तब्दीली को टारगेट करना होगा, यही इनके बेकाबू होने की वजह है, अगर इन तब्दील हुई कोशिकाओं पर तिहरा हमला किया जाए, तो इनका खात्मा तय है.
हालाँकि यह काम इतना आसान नहीं और यह काफी महँगा भी हैं इसके लिए पहले तो कैंसर के मरीज की कोशिकाओं की पड़ताल करके ये पता लगाना होगा कि उनमें बदलाव क्या आया है, फिर उसे निशाना बनाने का तरीका तलाशना होगा. यानी हर मरीज के लिए खास एंटीजेन तलाशना होगा, जिससे इन बेकाबू कोशिकाओं का काम तमाम किया जा सके.
अगर यह तरीका ढूंढ लिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब कैंसर जैसी बिमारी का खात्मा भी हो सकेगा.
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