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हिमांशु गुप्ता | डाईबिटिज का होना आजकल एक आम बात है. भारत में बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी से पीड़ित है. डाईबिटिज होने का मुख्य कारण पेनक्रियाज का सही से नही काम करना है. डाईबिटिज एक जीवन भर चलने वाली बीमारी है यानी डाईबिटिज के मरीज को जिन्दगी भर दवाई खानी पड़ती है.

डाईबिटिज दो तरह की होती है, टाइप 1 एवं टाइप 2 . टाइप 1 डाईबिटिज की स्थिति में पेनक्रियाज इन्सुलिन बनाना बंद कर देता है. इन्सुलिन ब्लड में ग्लूकोज को प्रोसेस करने के लिए जरुरी है. टाइप 2 डाईबिटिज की स्थिति में पेनक्रियाज इन्सुलिन तो बनता है लेकिन हमारे बॉडी के सेल उसको अच्छी तरह ग्रहण नही कर पाते. इस स्थिति को इन्सुलिन रेजिस्टेंस भी कहा जाता है.

भारत में डाईबिटिज के मरीजो में 80 फीसदी लोगो को टाइप 2 डाईबिटिज है. शरीर में डाईबिटिज की सामान्य मात्र 140 तक है. यदि आप डाईबिटिज का टेस्ट कराते है और परिणाम 140 से ज्यादा आता है तो आपको डाईबिटिज हो सकती है. भारत में बहुत से लोगो को प्री- डाईबिटिज है. ये वो लोग है जिनको अभी डाईबिटिज नही है परन्तु आगे चलकर उनको डाईबिटिज हो जाएगी.

हमारा शरीर असंख्य छोटे छोटे सेलो से मिलकर बना होता है. शरीर में उर्जा बनाने के लिए इन सेलो को बहुत ही साधारण रूप में खाने की आवश्यकता होती है. जो कुछ भी हम खाते है वो गुल्कोज के रूप में परिवर्तित हो जाता है तथा इन्सुलिन की मदद से सेल इस गुल्कोज का इस्तेमाल खाने के रूप में करते है.

यदि शरीर में गुल्कोज का स्तर बढ़ जाता है तो पेनक्रियाज ज्यादा इन्सुलिन बनाना शुरू कर देता है तथा यदि शरीर में गुल्कोज का स्तर कम है तो पेनक्रियाज कम इन्सुलिन बनता है. शरीर में गुल्कोज का स्तर नियन्त्र में रखना अति आवश्यक है. अनियंत्रित गुल्कोज शरीर के कई अंगो को प्रभावित कर सकती है. मुख्यतः अनियंत्रित गुल्कोज किडनी , दिल और आँखों को प्रभावित करता है.

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लक्षण

डाईबिटिज के मुख्य लक्षण है वजन कम होना, प्यास ज्यादा लगना, बार बार पेशाब जाना, थकावट होना, आँखों की रोशनी कम होना आदि है.

उपचार

टाइप 1 डाईबिटिज में व्यक्ति को इन्सुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते है. टाइप 2 डाईबिटिज की स्थिति में व्यक्ति को ऐसी दवाई लेनी होती है जो पेनक्रियाज को ज्यादा इन्सुलिन बनाने के लिए प्रेरित करती है. Metformin तथा glimipride ऐसी दवाओ का उदहारण है.

नोट -: किसी भी दवाई का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह ले 

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